जब अटल (व्योम ठक्कर) पंचायत में इस पर अपना दमदार तर्क देता है कि लड़कियों को पढ़ने देना चाहिये, तब तोमर लड़कियों के पैरेंट्स से कहता है कि वे उन्हें घर में ही रखें। जब वे लड़कियों के पास जाते हैं, तब अलग-अलग मोहल्लों की कई लड़कियाँ अटल का साथ देती हैं, क्योंकि वह लड़कियों की शिक्षा के अधिकार को सुरक्षित करना चाहता है। कहानी के इस हिस्से के बारे में बताते हुए, कृष्णा देवी, ऊर्फ नेहा जोशी ने कहा, ‘‘पंचायत में अटल सभी से पूछता है कि क्या वे ग्वालियर को एक प्रगतिशील शहर के रूप में प्रसिद्ध करना चाहते हैं या ऐसी जगह के तौर पर, जहाँ लड़कियों को पढ़ने की अनुमति नहीं है। वह राजा के प्रतिनिधि को भी बताता है कि तोमर लड़कियों की शिक्षा का विरोध कर रहा है, लेकिन तोमर चतुराई से यह आरोप लड़कियों के पिताओं पर मढ़ देता है। जब अटल पंचायत को राजी करने पर उतारू होता है, जब राजा का प्रतिनिधि लड़कियों को पढ़ने देने का फैसला सुना देता है।’’ हालांकि, लड़कियों के पिता इस फैसले का विरोध करते हैं, लेकिन प्रतिनिधि उनसे कहता है कि उसका फैसला अंतिम है। राजा का प्रतिनिधि अटल के पिता कृष्ण बिहारी (आशुतोष कुलकर्णी) से भी कहता है कि एक दिन अटल ग्वालियर और भारत को गौरव दिलाएगा। कृष्णा देवी आगे बताती हैं, ‘‘सरपंच इस फैसले पर नाराजगी जताता है, क्योंकि इससे लड़कियाँ अपने पिता से दूर होंगी, लेकिन लड़कियाँ अटल को उसकी कोशिश के लिये धन्यवाद देती हैं। हालांकि, सुशीला बुआ (दीपा सावरगांवकर) लड़कियों के पिताओं को उकसाती है कि वे अटल से बदला लेने के लिये उसके परिवार को नुकसान पहुँचाएं। आखिरकार लड़कियों के पिता अवध को नुकसान पहुँचाते हैं और वाजपेयी परिवार को चेतावनी देते हैं कि अटल की हरकतें उनका इससे ज्यादा नुकसान करवा सकती हैं। अवध गुस्से में आकर अटल को घर में खींचता है और सभी से कहता है कि अटल उसकी बात मानकर ही काम करेगा। अटल दुविधा में है, लेकिन अवध से सहमत हो जाता है।’’
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